गो दुग्ध - एक अध्ययन



आधुनिक विज्ञान का यह मानना है कि सृष्टि के आदि काल में भूमध्य रेखा के दोनो ओर प्रथम एक गर्म भूखंड उत्पन्न हुवा था .इसे भारतीय परम्परा मे जम्बुद्वीप नाम दिया जाता है. सभी स्तन धारी भूमी पर पैरों से चलने वाले प्राणी दोपाए, और चौपाए जिन्हें वैज्ञानिक भाषा मे अ‍ॅग्युलेट मेमल ungulate mammal के नाम से जाना जाता है, वे इसी जम्बू द्वीप पर उत्पन्न हुवे थे.इस प्रकार सृष्टि में सब से प्रथम मनुष्य और गौ का इसी जम्बुद्वीप भूखंड पर उत्पन्न होना माना जाता है.इस प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय गाय ही विश्व की मूल गाय है. इसी मूल भारतीय गाय का लगभग 8000 साल पहले, भारत जैसे गर्म क्षेत्रों से योरुप के ठंडे क्षेत्रों के लिए पलायन हुवा माना जाता है.

जीव विज्ञान के अनुसार भारतीय गायों के 209 तत्व के डीएनए DNA में 67 पद पर स्थित एमिनो एसिड प्रोलीन Proline पाया जाता है. इन गौओं के ठंडे यूरोपीय देशों को पलायन में भारतीय गाय के डीएनए में प्रोलीन Proline एमीनोएसिड हिस्टीडीन Histidine के साथ उत्परिवर्तित हो गया. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में म्युटेशन Mutation कहते हैं. (Ref Ng-Kwai-Hang KF,Grosclaude F.2002.:Genetic polymorphism of milk proteins . In:PF Fox and McSweeney PLH (eds),Advanced Dairy Chemistry,737-814, Kluwer Academic/Plenum Publishers, New York) (देखें-Kwai- KF, Grosclaude F.2002:. दूध प्रोटीन की जेनेटिक बहुरूपता. में: पीएफ फॉक्स और McSweeney PLH सम्पादित लेख उन्नत डेयरी रसायन विज्ञान ,737-814, Kluwer शैक्षणिक / सर्वागीण सभा प्रकाशक, न्यूयॉर्क)

1. मूल गाय के दूध में Proline अपने स्थान 67 पर बहुत दृढता से आग्रह पूर्वक अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्यूसीन Isoleucine से जुडा रहता है. परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती. इस स्थिति में यह एमिनो एसिड Histidine, मानव शरीर की पाचन कृया में आसानी से टूट कर बिखर जाता है. इस प्रक्रिया से एक 7 एमीनोएसिड का छोटा प्रोटीन स्वच्छ्न्द रूप से मानव शरीर में अपना अलग आस्तित्व बना लेता है. इस 7 एमीनोएसिड के प्रोटीन को बीसीएम 7 BCM7 (बीटा Caso Morphine7) नाम दिया जाता है.

2. BCM7 एक Opioid (narcotic) अफीम परिवार का मादक तत्व है. जो बहुत शक्तिशाली Oxidant ऑक्सीकरण एजेंट के रूप में मानव स्वास्थ्य पर अपनी श्रेणी के दूसरे अफीम जैसे ही मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोडता है. जिस दूध में यह विषैला मादक तत्व बीसीएम 7 पाया जाता है, उस दूध को वैज्ञानिको ने ए1 दूध का नाम दिया है. यह दूध उन विदेशी गौओं में पाया गया है जिन के डीएन मे 67 स्थान पर प्रोलीन न हो कर हिस्टिडीन होता है.

बाल्य काल के रोग Pediatric disease.

आजकल भारत वर्ष ही में नही सारे विश्व मे , जन्मोपरान्त बच्चों में जो Autism बोध अक्षमता और Diabetes type1 मधुमेह जैसे रोग बढ रहे हैं उन का स्पष्ट कारण ए1 दूध का बीसीएम7 पाया गया है.
जन्म के समय बालक के शरीर मे blood brain barrier नही होता . माता के स्तन पान कराने के बाद तीन चार वर्ष की आयु तक शरीर में यह ब्लडब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है .इसी लिए जन्मोपरांत माता के पोषन और स्तन पान द्वारा शिषु को मिलने वाले पोषण का, बचपन ही मे नही, बडे हो जाने पर भविष्य मे मस्तिष्क के रोग और शरीर की रोग निरोधक क्षमता ,स्वास्थ्य, और व्यक्तित्व के निर्माण में अत्यधिक महत्व बताया जाता है .

वयस्क समाज के रोग और गोदुग्ध –Adult disease

मानव शरीर के सभी metabolic degenerative disease शरीर के स्वजन्य रोग जैसे उच्च रक्त चाप high blood pressure हृदय रोग Ischemic Heart Disease तथा मधुमेह Diabetes का प्रत्यक्ष सम्बंध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है.यही नही बुढापे के मानसिक रोग भी बचपन में ए1 दूध पीने के प्रभाव के रूप मे भी देखे जा रहे हैं.
आरम्भ में जब दूध को बीसीएम7 के कारण बडे स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूज़ीलेंड के सारे डेरी उद्योग के दूध का परीक्षण आरम्भ हुवा. सारे डेरी दूध पर करे जाने वाले प्रथम अनुसंधान मे जो दूध मिला वह सारा बीसीएम7 से दूषित पाया गया. इसी लिए यह सारा दूध ए1 कह्लाया .

तदुपरांत ऐसे दूध की खोज आरम्भ हुई जिस मे यह बीसीएम7 विषैला तत्व न हो. इस दूसरे अनुसंधान अभियान में जो बीसीएम7 रहित दूध पाया गया उसे ए2 नाम दिया गया. सुखद बात यह है कि विश्व की मूल गाय की प्रजाति के दूध मे, यह विष तत्व बीसीएम7 नहीं मिला. देसी गाय के दूध मे यह स्वास्थ्य नाशक मादक विष तत्व बीसीएम7 नही होता. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देसी गाय के दूध और दूध के बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते. भारतीय परम्परा में इसी लिए देसी गाय के दूध को अमृत कहा जाता है. आज यदि भारतवर्ष का डेरी उद्योग हमारी देसी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत सारे विश्व डेरी दूध व्यापार में सब से बडा दूध निर्यातक देश बन सकता है.
देसी गाय की पहचान आज के वैज्ञानिक युग में , यह भी महत्व का विषय है कि देसी गाय की पहचान प्रामाणिक तौर पर हो सके.साधारण बोल चाल मे जिन गौओं में कुकुभ , गल कम्बल छोटा होता है उन्हे देसी नही माना जात, और सब को जर्सी कह दिया जाता है.

प्रामाणिक रूप से यह जानने के लिए कि कौन सी गाय मूल देसी गाय की प्रजाति की हैं गौ का डीएनए जांचा जाता है. इस परीक्षण के लिए गाय की पूंछ के बाल के एक टुकडे से ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह गाय देसी गाय मानी जा सकती है या नहीं . यह अत्याधुनिक विज्ञान के अनुसन्धान का विषय है.

पाठकों की जान कारी के लिए भारत सरकार से इस अनुसंधान के लिए आर्थिक सहयोग के प्रोत्साहन से भारतवर्ष के वैज्ञानिक इस विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं और निकट भविष्य में वैज्ञानिक रूप से देसी गाय की पहचान सम्भव हो सकेगी. इस महत्वपूर्ण अनुसंधान का कार्य दिल्ली स्थित महाऋषि दयानंद गोसम्वर्द्धन केंद्र की पहल और भागीदारी पर और कुछ भारतीय वैज्ञानिकों के निजी उत्साह से आरम्भ हो सका है.

1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

दुनिया भर में डेयरी उद्योग आज चुपचाप अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों मेंअच्छा दूध अर्थात् BCM7 मुक्त ए2 दूध के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रहे हैं. वैज्ञानिक शोध इस विषय पर भी किया जा रहा है कि किस प्रकार अधिक ए2 दूध देने वाली गौओं की प्रजातियां विकसित की जा सकें.

डेरी उद्योग की भूमिका

मुख्य रूप से यह हानिकारक 1 दूध होल्स्टिन फ्रीज़ियन प्रजाति की गाय मे ही मिलता है, यह भैंस जैसी दीखने वाली, अधिक दूध देने के कारण सारे डेरी उद्योग की पसन्दीदा गाय है. होल्स्टीन फ्रीज़ियन दूध के ही कारण लगभग सारे विश्व मे डेरी का दूध ए1 पाया गया . विश्व के सारे डेरी उद्योग और राजनेताओं की आज यही कठिनाइ है कि अपने सारे ए1 दूध को एक दम कैसे अच्छे ए2 दूध मे परिवर्तित करें. आज विश्व का सारा डेरी उद्योग भविष्य मे केवल ए2 दूध के उत्पादन के लिए अपनी गौओं की प्रजाति मे नस्ल सुधार के नये कार्य क्रम चला रहा है. विश्व बाज़ार मे भारतीय नस्ल के गीर वृषभों की इसी लिए बहुत मांग भी हो गयी है. साहीवाल नस्ल के अच्छे वृषभ की भी बहुत मांग बढ गयी है.

सब से पहले यह अनुसंधान न्यूज़ीलेंड के वैज्ञानिकों ने किया था.परन्तु वहां के डेरी उद्योग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपाने के प्रयत्नों से उद्विग्न होने पर, 2007 मे Devil in the Milk-illness, health and politics A1 and A2 Milk” नाम की पुस्तक Keith Woodford कीथ वुड्फोर्ड द्वारा न्यूज़ीलेंड मे प्रकाशित हुई. उपरुल्लेखित पुस्तक में विस्तार से लगभग 30 वर्षों के विश्व भर के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगों के अनुसंधान के आंकडो के आधार पर यह सिद्ध किया जा सका है कि बीसीएम7 युक्त ए1 दूध मानव समाज के लिए विष तुल्य है.

इन पंक्तियों के लेखक ने भारतवर्ष मे 2007 में ही इस पुस्तक को न्युज़ीलेंड से मंगा कर भारत सरकार और डेरी उद्योग के शीर्षस्थ अधिकारियों का इस विषय पर ध्यान आकर्षित कर के देसी गाय के महत्व की ओर वैज्ञानिक आधार पर प्रचार और ध्यानाकर्षण का एक अभियान चला रखा है.परन्तु अभी भारत सरकार ने इस विषय को गम्भीरता से नही लिया है.

डेरी उद्योग और भारत सरकार के गोपशु पालन विभाग के अधिकारी व्यक्तिगत स्तर पर तो इस विषय को समझने लगे हैं परंतु भारतवर्ष की और डेरी उद्योग की नीतियों में बदलाव के लिए जिस नेतृत्व की आवश्यकता होती है उस के लिए तथ्यों के अतिरिक्त सशक्त जनजागरण भी आवश्यक होता है. इस के लिए जन साधारण को इन तथ्यों के बारे मे अवगत कराना भारत वर्ष के हर देश प्रेमी गोभक्त का दायित्व बन जाता है.

विश्व मंगल गो ग्रामयात्रा इसी जन चेतना जागृति का शुभारम्भ है.

देसी गाय से विश्वोद्धार

भारत वर्ष में यह विषय डेरी उद्योग के गले आसानी से नही उतर रहा, हमारा समस्त डेरी उद्योग तो हर प्रकार के दूध को एक जैसा ही समझता आया है. उन के लिए देसी गाय के ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देने वाली गाय के दूध में कोई अंतर नही होता था. गाय और भैंस के दूध में भी कोई अंतर नहीं माना जाता. सारा ध्यान अधिक मात्रा में दूध और वसा देने वाले पशु पर ही होता है. किस दूध मे क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषय पर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है. सरकार की स्वास्थ्य सम्बंधि नीतियां भी इस विषय पर केंद्रित नहीं हैं.
भारत में किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में 1 दूध देने वाली गौओं की सन्ख्या 15% से अधिक नहीं है.

भरत्वर्ष में देसी गायों के संसर्ग की संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्र के साथ ही हैं .आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 से देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.

छोटे ग़रीब किसनों की कम दूध देने वाली देसी गाय के दूध का विश्व में जो आर्थिक महत्व हो सकता है उस की ओर हम ने कई बार भारत सरकार का ध्यान दिलाने के प्रयास किये हैं. परन्तु दुख इस बात का है कि गाय की कोई भी बात कहो तो उस मे सम्प्रदायिकता दिखाई देती है, चाहे कितना भी देश के लिए आर्थिक और समाजिक स्वास्थ्य के महत्व का विषय हो.


टिप्पणियाँ

  1. SWami ji parnam me 17 saal se biemar rheta hu sb jagha diekhaya parntu kahi bie Aaram nahi miel raha kuhc be samaj nahi As Raha Kay Karu kirpa kuhc Rasta bataye or baajrang baan ka paat viedhi ke saat bata di jeye App ki badi kirpa hogi Dhanewad hoga

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- डॉ. श्री कृष्ण मित्तल