वन्दे धेनु मातरम भारतीय संस्कृति में कृषि व गौपालन का अति उत्तम स्थान रहा है। एक दो नहीं लाखों करोड़ों गाँव वाले इस देश में दूध दही की नदियाँ बहती थी। हर परिवार की कन्या दुहिता यानी दुहने वाली कहलाई । ब्रह्म मुहूर्त में उठते ही गृहनीयाँ झूमती हुई दही बिलोती और माखन मिश्री खिलाती थीं व अन्न्दा सुखदा गौमाता के लिए भोजन से पहले गौग्रास निकालना धर्म का अंग था। तेरहवी सदी में मक्रोपोलो ने लिखा की भारतवर्ष में बैल हाथिओं जैसे विशालकाय होते हैं , उनकी मेहनत से खेती होती है , व्यापारी उनकी पीठ पर फसल लाद कर व्यापार के लिए ले जाते हैं। पवित्र गौबर से आँगन लीपते हैं और उस शुद्ध स्थान पर बैठ कर प्रभु आराधना करते हैं। "कृषि गौरक्ष्य वाणीज्यम" के संगम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूर्णता , स्थिरता , व्यापकता वः प्रतिष्ठा दी जिसके चलते भारत की खोज करते भारत से कल्पतरु (गन्ना) और कामधेनु (गाय) लेकर गया. माना जाता है की इनकी संतति से अमरीका इंग्लैंड डेनमार्क आस्ट्रेलिया न्युजीलैंड सहीत समस्त साझा बाज़ारके नौ देशों में गौधन बढा,वह देश सम्पन्न हुए और(भारत) सोने की चिडिया
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