गाय और गांव पर आधारित विकास का व्यावहारिक रूप



-अतुल दयाल
सौ एकड़ पर जैविक खेती का सफल प्रयोग करने के साथ-साथ संस्थान ने छोटी जोत वाले किसानों के लिए भी आदर्श प्रारूप तैयार किए हैं। … इसी प्रकार संस्थान ने एक बिस्वा (एक एकड़ के 36वें भाग) का भी प्रारूप तैयार किया है जो एक किसान के परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है।
देश को स्वाधीन हुए 57 वर्ष से अधिक हो गए, परंतु आज भी देश का तंत्र स्वतंत्र नहीं है। इसीलिए विकास के तमाम प्रयत्नों व दावों के बाद भी आज देश के 30 करोड़ लोगों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट बना ही हुआ है। देश के गांव जहां गरीबी और अभावों का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं, वहीं नगरों और महानगरों के लोग प्रदूषण और तत्जन्य दुष्परिणामों से ग्रस्त। स्वाधीनता के इन 57 वर्षों में सरकारें तो कई आर्इं और गर्इं, परंतु विकास की दिशा और धुरी स्पष्ट नहीं होने के कारण स्थितियां क्रमश: बिगड़ती ही गई हैं।
विकास की पश्चिमी चकाचौंध से प्रभावित सरकारें यह भूल गईं कि भारत गांवों और गायों का देश है। इनकी उपेक्षा किए जाने के कारण गोवंश की कमी हुई और परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन तो प्रभावित हुआ ही, भूमि की उर्वराशक्ति भी क्षीण हुई। विकास कार्यों के सरकारीकरण से स्वदेशी, स्वावलंबन और सामुदायिक भावनाओं में कमी आई, समाज की पहल से होने वाले कार्यों में बाधा पहुंची और जन भागेदारी घटी।
देश के विकास के लिए आवश्यक दृष्टि और समझ के इस अभाव को अनुभव कर गोरक्षामूलक, ग्रामोद्योग प्रधान अनेक प्रकल्प देश में खड़े होने लगे हैं। ऐसा ही एक प्रकल्प है, वाराणसी का सुरभि शोध संस्थान। गांवों का गौ आधारित समग्र विकास ही संस्थान का लक्ष्य है। संस्थान का मानना है कि गोपालन द्वारा छोटे-बड़े सभी किसानों को स्वावलंबी बनाया जा सकता है।
जैविक खेती का चमत्कार
इस परिकल्पना को व्यवहार्य रूप प्रदान करने के लिए वाराणसी से 50 किलोमीटर दूर वाराणसी-मिर्जापुर मार्ग पर स्थित डगमगपुर नामक गांव में संस्थान ने सुरभि ग्राम का विकास किया। 1998 में जब संस्थान ने यहां कार्य प्रारंभ किया था, तब यह भूमि पूरी तरह बंजर और पथरीली थी। विंध्याचल पर्वतमाला का आरंभ स्थान होने के कारण जमीन में जहां खोदें, वहां पत्थर ही निकलते थे, परंतु लगभग छ: वर्षों के कड़े व निरंतर परिश्रम के बाद आज यहां सर्वत्र हरियाली छाई है।
इस बंजर और पथरीली जमीन को उपजाऊ और हरा-भरा बनाने का पूरा श्रेय यहां पाले गए गोवंश को जाता है। संस्थान ने दूध, दही, घी आदि के साथ-साथ गोवंश से प्राप्त होने वाले गोबर और गोमूत्र पर विशेष काम किया है। गोबर से नडेप, वर्मी, कम्पोस्ट व समन्वय जैसे उर्वरक और गोमूत्र से कई प्रकार के कीट निरोधक तैयार किए। इनके आधार पर सुरभि ग्राम में रासायनिक खादों व कीटनाशकों से पूरी तरह मुक्त जैविक खेती विकसित की गई है। इस जैविक खेती से यहां अनेक प्रकार की फसलें, फल, सब्जियां और मसाले उपजाए जा रहे हैं।
सौ एकड़ पर जैविक खेती का सफल प्रयोग करने के साथ-साथ संस्थान ने छोटी जोत वाले किसानों के लिए भी आदर्श प्रारूप तैयार किए हैं। उदाहरण के लिए एक एकड़ जमीन वाला किसान यदि दो गाएं पाले तो प्रतिदिन 5-6 घंटे के परिश्रम से अपने परिवार हेतु वर्षभर के लिए दूध, गेहूं, चावल, हर मौसम की सब्जियां और मसाले आदि उपजा सकता है और पैदावार से कमाई भी कर सकता है। संस्थान के सचिव और प्रसिध्द गांधीवादी श्री जटाशंकर कहते हैं कि आज का किसान यदि चाहे भी तो फल नहीं खा सकता परंतु इस एक एकड़ के प्रारूप से वह अपने परिवार को फल व अन्य पौष्टिक आहार उपलब्ध करा सकता है। इसके साथ ही गोबर गैस के उत्पादन से वह ईंधन की भी बचत कर सकेगा। इसी प्रकार संस्थान ने एक बिस्वा (एक एकड़ के 36वें भाग) का भी प्रारूप तैयार किया है जो एक किसान के परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है।
धरातल पर शोध कार्य
सुरभि शोध संस्थान ने अपने शोध कार्यों में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को भी अपने साथ जोड़ा है। संस्थान ने सुरभि ग्राम में विश्वविद्यालय के कृषि विभाग के वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया ताकि शोधों को प्रयोगशाला से निकालकर सीधा खेतों तक पहुंचाया जा सके। आज सुरभि ग्राम में इन शोधों का व्यावहारिक रूप देखा जा सकता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के डा. रमेश चन्द्र तिवारी का कहना है कि सुरभि ग्राम पूरे विश्व के लिए एक आदर्श बन कर उभरेगा। जिस तरह यहां गोपालन, जल छाजन व प्रबंधन, मृदा-जल संरक्षण, जैव विविधता एवं पर्यावरण संरक्षण, जैविक खेती, समन्वित कृषि प्रणाली और ग्रामीण रोजगारों का विकास किया गया है, इससे हमें पूरा विश्वास है कि बंजर और रासायनिक खादों के कारण बंजर हो गई उपजाऊ भूमि को भी खेती योग्य बनाया जा सकता है।
जैविक खेती का महत्व दिखाने के लिए संस्थान ने प्रयोग के तौर पर जमीन के एक टुकड़े को तीन भागों में बांटा है। एक टुकड़े में रासायनिक खादों, दूसरे टुकड़े पर बायो कम्पोस्ट और तीसरे टुकड़े पर वर्मी कम्पोस्ट द्वारा फसलों का उत्पादन किया जाता है। निश्चित अंतराल पर तीनों टुकड़ों की मिट्टी पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण किया जाता है। इन परीक्षणों से जैविक खाद के लाभ दिख रहे हैं परंतु अंतिम निष्कर्ष निकालने के लिए यह प्रयोग अभी और तीन सालों तक चलेगा।
गाय का अर्थशास्त्र
सुरभि शोध संस्थान की स्थापना 1992 में गोवंश को सरंक्षित कर उनके विकास के लिए की गई थी। संस्थान के सदस्यों ने विनोबा जी के आन्दोलन ‘रोको भाई रोको’ से प्रेरित होकर कत्ल के लिए जा रही कई हजार गायों और बैल को बचाया है। उनके रख-रखाव की समस्या को दूर करने के लिए काशी गौशाला का पुनरोध्दार किया गया। आज यह देश की श्रेष्ठतम गौशालाओं में गिनी जाती है। इस गौशाला की अनेक शाखाएं हैं, जिनमें से सदर, सारंग, बावनबीघा, मधुवन, वृन्दावन, पंचशिवालय और रामेश्वर इकाइयों में गोवंश पर महत्वपूर्ण शोध चल रहे हैं।
गौशाला में ऐसी गाएं भी हैं जिन्हें बेकार समझ कर छोड़ दिया गया था या जो काफी कम दूध दे रही थीं। ऐसी गायों को यहां पौष्टिक और जैविक आहार देकर पाला गया। आज ये गाएं 10 से 12 लीटर दूध दे रही हैं। दूध के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए सुरभि शोध संस्थान ने गोरस भंडार समिति की स्थापना की। वर्तमान में वाराणसी शहर में लगभग 10 हजार लीटर दूध प्रतिदिन गोरस भण्डार समिति द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। समिति के माध्यम से मिर्जापुर, चन्दौली और बनारस के लगभग सौ गांवों के किसानों को कुल मिलाकर लगभग एक लाख रफपए प्रतिदिन की आय हो रही है।
संस्थान द्वारा आसपास के किसानों को बिना मूल्य लिए गोवंश भी उपलब्ध कराया जाता है। संस्थान के संरक्षक व प्र्रख्यात गांधीवादी आचार्य शरद कुमार साधक का कहना है कि संस्थान का मूल मंत्र और उद्देश्य मदनमोहन मालवीय जी का यह मंत्र है – ‘ग्रामे-ग्रामे सभा कार्या, गेहे-गेहे शुभा कथा / पाठशाला मल्लशाला गवां सदनमेव च।’ अर्थात गांव-गांव में सभा कर लोगों को जाग्रत करना, घर-घर में सद्विचार पहुंचाना, जगह-जगह विद्यालय खड़े करना और गौरक्षा मूलक व स्थानीय उद्योग प्रधान लोक शिक्षण के प्रयोग व प्रशिक्षण को बढ़ावा देना ही संस्थान का उद्देश्य है।
अनूठे प्रयोग
संस्थान इन कार्यों के अलावा विविध प्रकार के प्रकल्प भी चलाता है। ऐसा ही एक प्रकल्प है सरस्वती मनोविकास केन्द्र। यहां मनोरोगी बच्चों की देखभाल की जाती है और उन्हें प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया जाता है। संस्थान द्वारा ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए महिला उद्यमिता केन्द्र चलाया जाता है। यहां महिलाओं को कपड़ा सिलाई व मसाला पीसने जैसे कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है। संस्थान की एक अनूठी योजना है अन्नपूर्णा सेवा। यहां लोगों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
यहां कोई भी व्यक्ति मात्र सात रफपए देकर पौष्टिक भोजन कर सकता है। आसपास रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों और रिक्शाचालकों के लिए यह भोजनालय वरदानस्वरूप ही है। परंतु यह एक भोजनालय मात्र नहीं है। यहां एक मंदिर और एक पुस्तकालय भी है। भजन-कीर्तन और पढ़ने के साथ-साथ यहां अनपढ़ लोगों को पढ़ना-लिखना भी सिखाया जाता है। इस प्रकार संस्थान ने न केवल गौ-आधारित आदर्श अर्थव्यवस्था खड़ी करके दिखाई है, बल्कि इसने अनेकानेक सामाजिक प्रकल्प भी खड़े किए गए हैं।
संस्थान का पता है:
सुरभि शोध संस्थान
बी-27/75, डी. रवीन्द्र पुरी,
वाराणसी, उत्तरप्रदेश – 221005
दूरभाष : 0542-2276460, 2276355

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- डॉ. श्री कृष्ण मित्तल