योजनाएं
- गौ वंश की भारतीय नस्लों का सरंक्षण एवं संवर्धन।
- गौमय से बिजली उत्पादन।
- बैल चलित विद्युत उत्पादक यंत्र।
- लकड़ी के टुकड़ो से विद्युत निर्माण।
- गौ मूत्र व गौमय से कीट व व्याधि नियंत्रक का उत्पादन।
- केंचुआ खाद का निर्माण।
- कृषकों के लिए अभिनव कार्यक्रम।
- सी.एन.जी. गैस का उत्पादन।
- कृषकों व गौ पालकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था।
- पंचगव्य औषधियों का निर्माण।
भारतीय गौ वंश नस्लें
इस नस्ल को कठियावाड़ी व देसन भी कहते हैं। मूल स्थान व फैलाव - इसका
उदगम स्थान सौराष्ट्र का गिर वन है। यह गुजरात राज्य में जूनागढ़, भावनगर
आदि क्षेत्र, समीपवर्ती महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश तथा राजस्थान के कुछ भागों
(अजमेर व भीलवाड़ा जिले ) में पाई जाती है। कई राज्यों में इसके शुद्ध
समूह रखे जा रहे हैं। इसका ललाट विशेष उभरा हुआ होता है। कान लम्बे, आँखें
छोटी तथा सींग छोटे एवं मुड़े हुए होते हैं।
मूल स्थान-बीकानेर क्षेत्र की नस्ल मानी गई है। गंगानगर में भी पाली
जाती हैं। लाल सिन्धी से काफी मिलती जुलती है। यह आकार में छोटी गलकम्बल
अधिक लटका हुआ, सींग छोटे कान मध्यम व पूंछ छोटी होती है। इसकी खुराक भी कम
होती है।
इस नस्ल को थारी भी कहते हैं। मूल स्थान-इसका मूल स्थान सिंध प्रदेश
का थारपारकर क्षेत्र है। भारत में यह राजस्थान के जोधपुर व जैसलमेर
क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके शुद्ध समूह भारत के अनेक स्थानों पर पाले
जा रहे हैं। यह नस्ल कम घास एवं झाडि़यों पर भी निर्वाह कर लेती है। मुंह
लम्बा, ललाट उभरा हुआ थुहा मध्यम होता है।
मूल स्थान एवं फैलाव-कच्छ रण के दक्षिण पूर्व में इसका मूल निवास है,
जो कि पाकिस्तान के थारपारकर जिले के उत्तर पश्चिमी कोने से लेकर गुजरात के
अहमदाबाद, दौसा व राधनपुर तक विस्तृत है। राजस्थान में यह पाली, जालौर,
एवं सिरोही जिलों में पायी जाती है।
मूल स्थान व फैलाव-मोन्टगोमरी जिला (पाक) भारत में अच्छे वंश के समूह
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, लक्षण-
भारतीय उपमहाद्वीप की सर्वोत्तम दुधारू नस्ल। रंग गहरे लाल से कत्थई रंग,
सींग छोटे। भरा शरीर व त्वचा ढीली, मूतान लटकता हुआ, गल कम्बल विकसित, माथा
व नथुना चौड़ा , टाँगें भारी, वक्ष स्थल चौड़ा , आँखों के चारों ओर सफेद
घेरा।
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