गोवंश व् पदार्थों आधारित उद्योग- डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल

परमपूजनीय श्रीश्रीश्री बालगंगाधरनाथ महास्वामीजी के चरणों में प्रणाम करते हुए मंच पर विराजमान अतिथिगण, पूर्णकर्नाटक से पधारे मेरे भाईबहिन व् पत्रकारबंधुओं, कर्नाटक गोशाला महासंघ, ऍफ़केसीसीआई और राज्य के डेढ़ करोड़ गोवंश की और से कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामना देते हुए देश की शायद प्रथम गोवंश व् पदार्थों आधारित उद्योग सेमिनार पर आप का स्वागत करता हूँ. मेरे मित्र ऍफ़केसीसीआई अध्यक्ष श्री डी.मुरलीधर द्वारा चुना आज का दिन इसविषयपर खास महत्व रखता है क्योंकि भगवान कृष्ण गोवंश रक्षा, सम्वर्धन और गोवंश द्वारा विकास के रूप माने जाते हैं. कर्नाटक भारत का छटा बडा राज्य है जिसका क्षेत्रफल १,९१,७९१ किलोमीटर और जिसमे ३० जिले, १७६ तहसील, ७४५ कसबे, २७४८१ बसे हुए ग्राम २७० शहर हैं. साढे पाँच करोड़ आबादी वाला उद्योगों से परिपूर्ण यह देश की ६.७% गोवंश द्वारा देश का छटा बड़ा दुग्ध उत्पादक राज्य है. २००५-०६ गोवंश जनगणना के अनुसार हमारे पास हलिकार, अमृतमहल. खिल्लार, देवनी, गिद्दा कृष्णवेली जैसी प्रसिद्ध नस्लों के साथ छिआन्वें लाख गाय बैल और इकतालीस लाख बीस हज़ार भैंसे हैं. आप की जानकारी के लिए राज्य की सूचनाएं आप तक दी जाचुकी हैं. मैं आपको कुछ दशक पहले ले चलता हूँ जब बिना गोवंश के खेती, परिवहन सिचाईं, यानी कोई भी गतिविधि सोच ही नहीं सकते थे. इस प्रभु की रचना को कामधेनु नंदी बृषभ जैसे आध्यात्मिक नाम से पुकारा जाता था. ग्रामीण दिनचर्या,अर्थ,विकास की केन्द्रिय धुरी यह गोवंश ओछे लालच और विदेशी सामानों के उपयोग के सामने हम लोगों ने भुला दिया है.परिणामवश मोक्षप्रदायनी, कामदा,सुखदा गोमाता आज अनुत्पादक, धरती का भार कही जाती है और प्रतिदिन क्रूरतापूर्वक विभिन्न विधि विधानों को तोड़ते हुए देश के हर कोने में हर राज्य कसाईखानो में कट कर गली गली में बिकती देखी जा सकती है. इस के परिणाम ?यह किस कीमत पर? यह दीवानगी भरा मूकप्राणी संहार आज पर्यावरण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, रोजगार, और ग्रामीण विकास को तहस नहस कर रहा है. साथिओं, आपको ज्ञात है कि? कर्नाटक राज्य में गोवंश से प्रतिवर्ष उपलब्ध ५करोड़ २५ लाख टन गोबर लगभग १८०० करोड़ कीमत कि ३७२.७५ करोड़ यूनिट बिजली उत्पन्न कर सकता है.और येही गोबर अगर व्यापारिक रूप से उपयोग में लाया जाये तो ग्राम का द्रश्य ही बदल सकता है और सबसे सस्ता नेसर्गिकखाद का उत्पादन राज्य कि खाद समस्या सुलझाते हुए र.३/-प्रति किलो से भी र.१६,००० करोड़ का राज्य उत्पादन में सहयोग दे सकता है. बैल शक्ति का कृषि, सिचाई, परिवहन व अन्य कल कारखानों को चलाने में उपयोग ग्रामीण बेरोजगारी समाप्त कर पेयजल, नलकूपचालन, विद्दयुत उत्पादन कर ग्राम विकास में सहयोग कर भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम डॉ. ऐ.पी.जे. अब्दुल क़लाम जी कि कल्पना 'पूरा' ग्राम में शहर कि सुविधा' कर सकता है कृषक और गौपालक को उत्पादन के अच्छे दाम दिलवाते हुए, प्राकृतिक साधनों के उपयौग से बेहतर स्वास्थ्य और राजस्व में अशीम बढोतरी और राज्य के व्ययों में कमी ला सकता है मित्रों, हमारे राज्य के हर जिले को लगभग ५ लाख गोवंश का आशीर्वाद प्राप्त है जीसके द्वारा असीम कीमती गोबर और गोमूत्र प्राप्त होता है. वजन के आधार पर हर जिले में लगभग २० लाख टन गोबर और ७ लाख ५० हजार किलोलीटर गोमूत्र का यानी राज्य का जोड ५ करोड़ २५लाख टन व् गोमूत्र २करोड़ किलोलीटर पैदाहोता है.यह निरंतर पैदा होने वाला उद्योगिक कच्चा पदार्थ उद्योगपति भाईओं कि आँखों से छुटा हुआ है. सवाल पैदा होता है कि यह कहाँ जा रहा है? निरंतर मशीनीकरण और कृत्रिम उत्पादों के बढ़ते उपयोग ने सबसे सस्ता यानी रु.३/- प्रतिकिलो का खाद भी आज भुला दिया गया है और डालर 450/- यानी रु. २२-२५/- प्रति किलो का रासायनिक खाद,बेश-कीमत विदेशी मुद्रा खर्च कर आयात किया जा रहा है लाखों करोड़ का सरकारी अनुदान देकर कृषक भाईओं में वितरित किया जा रहा है. और गोबर और गोमूत्र नालिओं से बहकर पास के तालाबो नहरों या नदियों में गिर कर उनकी सतह निरंतर ऊँची कर रहा है. इस जमी हुई गाद को निकालने पर पुनः राज्य और केन्द्रीय सरकारों का अरबों रुपया खर्च हो रहा है प्रिय उद्योगपति साथियो, मैं आप को बताना चाहता हूँ, आप का ध्यान इस स्वर्ण कि और आकर्षित करना चाहता हूँ जिस से बीसिओं वस्तुओं का निर्माण करना बहुत ही लाभदायक व्यवसाय हो सकता है .आज भी बैलो कि जोडी हमारे ग्रामीण दिलों में निवास करती है जो अकारण नहीं आज पुनः विद्दुत, जल, कृषि, कोल्हू, यातायात और परिवहन साधन के रूप में आप के द्वारा व्यवसायिक रूप में लाभ उपार्जन में कि जा सकती है.. विद्दुत के दो साधन बैलशक्ति , एक गोवंश ८ अश्वशक्ति, जो लगभग १२ करोड़ अश्वशक्ति के सामान और गोबर से उत्पादित बायोगेस यानी लगभग १४ किलो गोबर द्वारा गेस से एक विद्युत् इकाई पैदा कि जा सकती है. इस से प्रतिदिन काम में आनेवाली वस्तुएं जैसे साबुन, शेम्पू, फिनायल, धुप, अगरबती, रंग रोगन, कीमती टाइल, प्लाई बोर्ड, दवायीआं, मूर्तियाँ, यहाँ तक कि कागज भी निर्माण किया जा सकता है. कुच्छ संभावित उद्योगों कि जानकारीसूचिका आपके सामने है. हमे आप के साथ जुड़ने और इस विषय पर और जब भी और जैसी भी जानकारी हमारे पास है आप तक पहुँचाने और उपलब्ध कराने में अति प्रसन्नता होगी आईये गोवंश और इस पर आधारित उद्योगों के कुछ लाभों कि चर्चा करें 1.उद्योगों को चलाने के लिए लगभग ७ करोड़ टन वार्षिक गोबर और गोमूत्र के रूप में कच्चा माल जिसकी कच्चे माल के रूप में कीमत लगाना सूरज को रौशनी दिखाना होगा 2.आर्थिक रूप से संरक्षण प्राप्त होने पर गोवंश में कम से कम १०% अनुमानित वार्षिक वृधि होने से कच्चे माल की उपलब्धता में भी इस दर से बढोतरी होगी 3.राज्य सरकार का गोबर और गोमूत्र डेरी स्थापना कर निश्चित दाम पर खरीद और उपलब्ध करने का आश्वासन एक नए आयाम के प्रारम्भ होने का संकेत देता है 4.उपलब्धता हर जिले, हर तालुक, हर गाँव यानी सम्भावित उद्योग के १० किलोमीटर के दायरे में होने से उद्योग स्थान चुनने में आसानी और इसके सस्ती भूमि, श्रमिक जल विद्दयुत आदि और समय समय पर घोषित किया गये सरकारी सहायता,अनुदान.रियायतें जैसे अनगिणित स्थानीय लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं 5.केवल कच्चामाल ही नहीं बैलशक्ति का मशीन संचालन में विद्युतशक्ति के स्थान वायु, सोर्य उर्जा की तरह गैर पारम्परिक शक्ति उपयोग की असीम सम्भावना 6.प्रतिदिन बढ़ते हुए खनिजतेल दाम जो कभी भी २०० डालर पार कर सकते हैं भारतीय उद्योग के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा माना जाते हैं.कया हमे अभी से विभिन्न उपलब्ध उर्जा वाह कच्चे माल के स्त्रोत नहीं निकालने और इस्तमाल में लाने चाहियें. 7.ये ही नहीं, मेरी प्यारे साथिओं, इस अति लाभदायक उद्योग सम्भावना के लिए आप आगे आयेंगे तो राज्य में एक नए उद्योगिक वातावरण का निर्माण होगा जो लाखो नवयुवकों को को रोजगार, स्वस्थ्य भोजन, और आद्यात्मिक जीवन की और अग्रसर करेगा साथ में लाखों मूकप्रानिओं की रक्षा में सहायक होगा. 8.देशवासिओं के स्वास्थ्य का ध्यान नेसर्गिक उत्पादन प्रारम्भ कर और क्रत्रिम रासायनिक उत्पादों पर निर्भरता कम कर के ही रखा जा सकता है. गोवंश आधारित उद्योग स्थापना और इनके उत्पादों का कच्चे माल की तरह उपयोग कर ही हम यह आश्वासन पूरा कर सकते हैं. 9. लाभ का प्रतिशत इतना अधिक यानी गैरलाभ गैरहानी बिंदु स्थापित क्षमता के १० प्रतिशत उत्पादन में ही प्राप्त किया जासकता है इस अवसर पर उपस्तिथ माननीय मंत्री और विशिस्ट अतिथिगनो और मेरे पत्रकार साथिओं के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध करना चाहूँगा की इस और आगे बढ़नेवाले उद्योगपति साथिओं को पूर्ण सहयोग और बढ़ावा प्रदान करें. इस विशेष उद्योग के लिए विशेष उद्योगिक क्षेत्रों की संरचना की जाये, गोवंश आधारित आदर्शग्राम निर्धारित कीये जाएँ, विशेष रियायतें, अनुदान आर्थिक कर व् आबकारी से छूट प्रदान की जाये. जहाँ भी सरकारी विभागों में सम्भव हो गोवंश आधारित निर्माण को खरिदा जाये. साथियो आपने देखा की कितना लाभकारी और विस्तृत है हमारा गोवंश और इसही लिए आज यह सेमिनार है . आइये हम सब हाथ मिलाएँ और विश्व को गोवंश की महत्ता बता दें और इसे सिर्फ शाब्दिक नहीं लेकिन वास्तविक कामधेनु स्थापित करते हुए राज्य की उन्नति, प्रगति और युवा शक्ति, स्त्रीशक्ति, ग्रामशक्ति सबके उत्थान का मार्ग प्रसस्त करें और देश के उत्थान में अपना योगदान देकर राष्ट्रपिता महात्मागाँधीजी की रामराज्य कल्पना साकार करें. आप सभी को पुनः:इस सेमिनार से अतिशय लाभ हो और जल्द ही गोवंश आधारित उद्योगों के संरचना में जुडेंगे इसही विश्वास गोरक्षा के माध्यम से देश सेवा में रत जय भारत-जय कर्णाटक-जय गोमाता डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल बी.काम (हानार्स)एल एल एम्, पीएच. ड़ी अध्यक्ष कर्नाटक गोशाला महासंघ उपाध्यक्ष एस पी सी ऐ मैसूर उपाध्यक्ष भारत गोशाला फेडरेशन सदस्य भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड ०७ वन व् पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार सदस्य केरल राज्य जीव जन्तु कल्याण बोर्ड केरलसरकार

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गो दुग्ध - एक अध्ययन

- डॉ. श्री कृष्ण मित्तल